Thursday, 21 February 2019

मैं चाहती हूं क्या, मुझे जताना नहीं आता

मैं चाहती हूं क्या,
मुझे जताना नहीं आता...
लोग रूठ जाते है मुझसे,
और मुझे मनाना नहीं आता...
दर्द को छुपाना पुरानी आदत है मेरी,
मुझे जल्दी से मन की बात बताना नहीं आता..
लोग कहते है कि जवाब देती नहीं "घुन्नी" है ये लड़की,
क्या करू यारो सच बोल के किसी का दिल दुखाना नहीं आता..
दर्द के समंदर में डूब रहे हैं जैसे,
क्या करू मुझे गोते लगाना नहीं आता..
छूना चाहती हूं आसमान,
पर यारो मुझे तो उड़ना ही नहीं आता...
कई बार शिकायत कर जाती हूं अपनों से अपनों की ही,
क्या करू मुझसे अपनों  का गलत होते देखा नहीं जाता..
लोग कहते है कितनी शिकायते करती है ये लड़की,
क्या करू मुझे झूठी और गलत बाते  सहना नहीं आता...
जिन रिश्तों में झूठ और चालाकी है,
उन रिश्तों को मुझे निभाना नहीं आता.. 
आज भी कई मेरे अपनों के लिए मैं गलत हूं,
क्योंकि यारों मुझे झूठ का साथ देना नहीं आता..
अपनों की फ़िक्र ने अपनों से दूर करदिया,
क्या करू यारो मुझे अपनो की बेफिक्री करना नहीं आता...
प्यार बहुत करती हूं अपनों से,
पर मुझे प्यार जताना नहीं आता...
अब क्या कहूं मैं, क्या आता है और क्या नहीं,
बस मुझे मौसम की तरह बदलना नहीं आता...

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आसान बनाओ

क्यू हे जिंदगी में इतनी मुश्किलें, क्या ये आसान नही हो सकती... सीधा सीधा सा जीना हे जीवन, फिर क्यू जिंदगी आसान नही लगती